- फसल निरीक्षण का प्रमुख उद्देश्य बीज प्लाट के खेत स्तर पर निर्धारित मानकों के अनुरूप होने की पुष्टि करना है।
- फसल निरीक्षण में निम्नानुसार बिंदु शामिल होते हैं-
- बीज प्लाट में मान्य स्त्रोत से ही बीज प्राप्त कर बोया गया है।
- बीज प्लाट में पूर्व ऋतु में समान फसल / किस्म बोई गई थी ।
- पृथक्करण दूरी एवं संकर बीज उत्पादन में बार्डर लाइनें अपेक्षित संख्या में लगाई गई हैं।
- संकर बीज उत्पादन हेतु नर व मादा बीज की लाइनें निश्चित अनुपात में लगाई गई है।
- संदूषण के कारकों जैसे बाजरा व ज्वार में पोलन शेडर्स, मक्का में शेडिंग टेसल्स, भिन्न पौधे रोग ग्रस्त पौधे एवं अन्य पृथक किये जाने वाले दूसरी फसलों के पौधे निर्धारित मानक से अधिक तो नहीं है।
- बीज प्लाट किस्म विशेष के वर्णित लक्षणों के अनुरूप है।
- अन्य विशेष अर्हतायें यदि हों तो उन्हें पूर्ण किया गया है।
सामान्यत: बीज की गुणवत्ता प्रभावित करने वाले सभी कारकों का सत्यापन एक ही निरीक्षण में संभव नहीं होता, क्योंकि फसल में बीज की गुणवत्ता प्रभावित करने वाले कारक एक ही समय में स्पष्टत: दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। अत: सभी महत्वपूर्ण फसल वृध्दि की अवस्थाओं को ध्यान में रखते हुये अधिकांश फसलों में एक से अधिक निरीक्षण आवश्यक हैं। निरीक्षणों की संख्या फसल वृध्दि की अवस्थाओं, फसल की अवधि, परागण की प्रकृति, संदूषण व रोगों के लिये अनुकूलन एवं संदूषण करने वाले कारकों की प्रकृति के अनुसार विभिन्न फसलों में अलग- अलग हैं।
न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानकों में निरीक्षणों की संख्या निर्धारित है तदनुसार विभिन्न फसलों के निरीक्षण किये जाने चाहिये। निरीक्षणों की यह संख्या न्यूनतम है इनकेश्श्अतिरिक्त किये जाने वाले निरीक्षण लाभदायक होंगे।
सामान्यत: विभिन्न निरीक्षणों की सुविधा के लिये फसल वृध्दि की अवस्थाओं का विवरण निम्नानुसार है:
पुष्पन पूर्व की अवस्था
यह फसल के पुष्पन पूर्व की अवस्था है, निरीक्षण के लिये इसमें वानस्पतिक, पुष्पन के लिये कली निर्माण एवं पुष्पक्रम प्रारंभ होने के पूर्व की सभी वृध्दि अवस्थायें सम्मिलित हैं।
पुष्पन अवस्था
इस अवस्था में पुष्प या पुष्पक्रम के स्पाइकलेट्स या पेनिकल विकसित होकर खुल जाते हैं। निरीक्षण के लिये 50 प्रतिशत या अधिक पौधों में पुष्पन की अवस्था को मान्य किया जाता है।
पुष्पन बाद की अवस्था
इस अवस्था में निषेचन के बाद बीज विकास शुरू हो जाता है। इसमें दाने में दूध बनने से बीज के ठोस आकर में परिवर्तित होने तक की अवस्थायें सम्मिलित हैं।
फसल कटाई के पूर्व की अवस्था
इस अवस्था में बीज कार्यिक परिपक्वता की स्थिति में पहुंच जाता है। यद्यपि बीज निर्माण पूर्ण हो जाता है। लेकिन इस बीज में नमी का प्रतिशत अधिक होता है। अत: कटाई के पूर्व इसको सुखाना चाहिये, ताकि कटाई, गहाई व भण्डारण में सुगमता हो सके।
फसल कटाई की अवस्था
इस अवस्था में बीज पूर्णत: परिपक्व हो जाता है और फसल कटाई, गहाई हेतु पर्याप्त सूख जाती है। ऐसे बीज को कुछ सुखाने के बाद सुरक्षित भण्डारित कर सकते हैं।
- पर परागित फसलों में पुष्पन अवस्था के निरीक्षण आनुवांशिक शुध्दता की पुष्टि के लिये अनिवार्य है।
- स्व परागित फसलों में पुष्पन अवस्था के निरीक्षण भिन्न पौधों के निर्धारण के लिये आवश्यक है।
- कंडुवा रोग के लिये संवेदी किस्मों के गेहूं एवं पर परागित फसलों में पुष्पन अवस्था के निरीक्षण बीज उत्पादक को बिना सूचना दिये, करना अधिक उपयुक्त है।
- स्व परागित फसलों (कडुंवा रोग संवेदी गेहूं के अतिरिक्त) के निरीक्षण बीज उत्पादक को अग्रिम सूचना देकर करने से निरीक्षणों की वांछित संख्या में कमी हो सकती है।
- पुन: निरीक्षण के पूर्व अग्रिम सूचना देना, मान्य संदूषण के कारकों के निकालने में सहायक होगी।
एक ही दिन में एक ही खेत का दो बार निरीक्षण नहीं करना चाहिये। लेकिन पूर्व निरीक्षण में बताये गये संदूषक कारकों के निकालने की पुष्टि होने पर उसी दिन दूसरी बार पुन: निरीक्षण किया जा सकता है। यद्यपि उसी दिन पर्यवेक्षकीय निरीक्षण किया जा सकता है।
कटाई, गहाई व परिवहन
खेत स्तर पर मानक अनुरूप बीज फसल की कटाई, गहाई व बीज प्रक्रिया केंद्र तक परिवहन, बीज प्रमाणीकरण संस्था के दिशा निर्देशों के अनुसार करना चाहिये। इनके दौरान बीज उत्पादक को ऐसी सभी सावधानियाँ रखनी होंगी, जिससे बीज में मिश्रण व गुणवत्ता में ह्रास न हो सके।
बीज प्रक्रिया व परीक्षण
बीज प्रक्रिया से आशय बीज की सफाई, सुखाना, उपचारण, ग्रेडिंग व अन्य क्रियाओं से है जिनसे बीज की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। खेत स्तर पर मानकों के अनुरूप पाये गये बीज लाट प्रक्रिया हेतु प्रक्रिया केंद्रों पर लाये जाते हैं । बीज प्रक्रिया के लिये भारत सरकार द्वारा फसलवार जालियों के माप निर्धारित हैं। इनसे बीज की सफाई, ग्रेडिंग के साथ ही खरपतवारों के बीज, क्षतिग्रस्त, खराब बीज सिकुड़े व झुर्रीदार बीज, भूसा, पत्तियाँ, कंकड पत्थर एवं मिट्टी के कण अलग हो जाते हैं। बीज प्रमाणीकरण संस्था विषम स्थिति में निर्धारित जाली से एक कम माप की जाली के उपयोग की अनुमति देने के लिये अधिकृत है। प्रक्रियाकृत बीज में 5.0 प्रतिशत से अधिक अंडर साइज बीज नहीं होना चाहिये। बीज प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद प्रमाणीकरण संस्था बीज लाट का प्रतिनिधि नमूना निर्धारित प्रक्रिया अनुसार निकालेगी। इस नमूने का परीक्षण बीज परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा किया जाकर बीज परीक्षण परिणाम प्रतिवेदन दिया जावेगा।
टेगिंग, मुहरबंद करना एवं प्रमाण पत्र
बीज परीक्षण परिणाम एवं ग्रोआउट परीक्षण में मानक अनुरूप होने पर, बीज प्रमाणीकरण संस्था बीज लॉट की पैकिंग, टेगिंग एवं सीलिंग (मोहरबंद) करने के साथ ही प्रमाण पत्र जारी करेगी। संस्था के अधिकृत अधिकारी द्वारा प्रमाणीकरण टेग पर हस्ताक्षर कर मोहर लगाई जावेगी। प्रमाणीकरण हेतु प्रयुक्त थैले उपयुक्त होना चाहिये।
प्रमाण पत्र की वैधता अवधि
प्रथम बार प्रमाणीकरण बीज परीक्षण की तिथी से 9 माह तक वैध होगा। यह वैधता अवधि पुन: परीक्षण में बीज लॉट के निर्धारित मानकों के अनुरूप पाई जाने पर अगले 6 माह के लिये बढ़ाई जा सकती है। एक बीज लॉट की वैधता अवधि उसके निर्धारित मानकों के अनुरूप पाये जाने तक बढ़ाई जा सकेगी। |